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*माँ शबरी रामलीला महोत्सव का शुभारम्भ-विभिन्न प्रांतों के जनजाति, आदिवासी कलाकारों द्वारा माँ शबरी रामलीला का अद्भुत मंचन*

जनाधार न्यूज़,ऋषिकेश, 20 अक्टूबर। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के आशीर्वाद और नेतृत्व में परमार्थ निकेतन के दिव्य गंगा तट पर आज से माँ शबरी रामलीला महोत्सव का शुभारम्भ हुआ।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, वित्तमंत्री, उत्तराखंड सरकार प्रेमचन्द अग्रवाल जी, डा शक्ति बख्शी जी, विश्व मोहन जी तथा स्पेन, अमेरिका, इंग्लैंड, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका, दुबई, फ्रांस, स्वीडन, आॅस्ट्रेलिया, स्विट्ज़रलैंड, इटली, कनाडा, आॅस्ट्रिया आदि अनेक देशों से आये श्रद्धालुओं ने दीप प्रज्वलित कर माँ शबरी रामलीला महोत्सव का उद्घाटन किया।
भारतीय संस्कृति और विरासत का अद्भुत आध्यात्मिक ग्रंथ महाकाव्य रामायण का मंचन भारत के विभिन्न प्रांतों यथा मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़िसा के जनजाति, आदिवासी कलाकारों द्वारा किया जा रहा हैं। स्वामी जी ने कहा कि समाज में सद्भाव, समरसता और समता की त्रिवेणी बहती रहे इसलिये बहुत जरूरी है कि स्नेह के जल से हम इस समाज को सिंचित करते रहें।
रामलीला का मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त भेदभाव, ऊँच-नीच और अस्पृश्यता को पूरी तरह से समाप्त करना तथा भगवान श्री राम जी के जीवन की घटनायेें, धर्म की जीत, अधर्म की पराजय और बुराई पर अच्छाई की विजय का जो प्रतीक है उस के दर्शन कराना है।
रामलीला मनोरंजन का केन्द्र नहीं है बल्कि रामलीला के माध्यम से रामायण के मूल्यों, नैतिकता, भक्ति, निःस्वार्थ प्रेम, धर्म की रक्षा, सत्य का अनुसरण आदि गुणों के बारे में वर्तमान पीढ़ी को जागृत करना है। रामलीला मंचन के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहंुचाना ताकि उन मूल्यों को संरक्षित रखा जा सके।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज माँ गंगा के पावन तट पर रामलीला के माध्यम से भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का मंचन किया जा रहा है ताकि रामायण में निहित मूल्यों, ज्ञान, संबंधों के महत्व और शिक्षाओं को वर्तमान पीढ़ी जान सके। माता शबरी के पास प्रभु को समर्पित करने के लिये प्रेम ही तो था। प्रेम ही वह जल है जो परिवार, समाज, राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांध सकता है।
यह एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं है कि प्रत्येक वर्ष दशहरा के अवसर पर भगवान श्री राम ने रावण का वध कर दिया इसका मंचन किया जाये बल्कि यह हमारे नैतिक मूल्यों, सांस्कृतिक परम्पराओं, भाई-भाई के प्रेम, संबंधों की मर्यादा का जश्न है। रामलीला के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक विरासत को सुदृढ़ बनाने का अद्भुत कार्य सैस फाउंडेशन के माध्यम से किया जा रहा है।
स्वामी जी ने कहा कि आज राष्ट्रीय एकजुटता दिवस भी है और रामलीला देश भर के सभी कलाकारों, समुदायों को एकजुट करने का अद्भुत कार्य कर रही है। प्रभु श्री राम ने भी वानरों, भीलों सभी को एकजुट कर संगठित होकर सभी समस्याओं के समाधान का संदेश दिया। दूसरी ओर माता शबरी ने अपने गुरु के केवल एक वचन “भगवान् श्री राम आयेंगे और इसके लिए तुम्हे कहीं जाने की जरुरत भी नहीं हैं, तुम उनका यहीं पर रहकर इंतजार करना” इस आदेश पर अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया और उसी एक विचार को अपना ध्येय बना लिया यही है अपने गुरू, अपने आराध्य के प्रति समर्पण। आज अपने राष्ट्र के प्रति युवाओं के इसी प्रकार के समर्पण की आवश्यकता है।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि भारतीय सभ्यता पूरी दुनिया में सबसे पुरानी जीवंत सभ्यताओं में से एक है जो वर्तमान समय में भी ज्ञान और भक्ति का सर्वश्रेष्ठतम संदेश देती है। प्रभु श्री राम का चरित्र हम सभी को एक नयी ऊर्जा और नूतन विचार प्रदान करता है। रामलीला वर्तमान पीढ़ी को अपनी मातृभाषा और अपने पूर्वजों के संस्कारों को अपने जीवन में अपनाएँ का संदेश देती है।
स्वामी जी ने मंत्री प्रेमचन्द आग्रवाल जी और भारत के विभिन्न प्रांतों से आये कलाकारों को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।

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