जनाधार न्यूज, 7 मार्च, ऋषिकेश। पूज्य महामंडलेश्वर असंगानन्द सरस्वती जी महाराज के आशीर्वाद से परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने देशवासियों को होली की शुभकामनायें भेंट करते हुये जैविक रंगों से होली खेलने का संदेश दिया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आईये एक-दूसरे के हो-ले यही तो होली है। होली अर्थात हो-ली, जो होनी थी, वो हो गयी और बीत गयी, लेकिन अब आगे बढ़ें और नये भारत के निर्माण में जुट जायें क्योंकि देश हमें देता है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखे’’ इसलिये देशभक्ति के रंग में रंगकर होली का त्यौहार मनायें।
भारत के तेजस्वी ऊर्जावान प्रधानमंत्री जी का उद्घोष कि सभी भारतवासी मिलकर एकता, अखंड़ता और देशभक्ति के रंग में रंगे और इस देश का नवनिर्माण करें। भारतीय संस्कृति और भारत को भारत की आंखों से देखंे, भारत को शंका से नहीं श्रद्धा से देखें, यही तो होली हैं आज इसी की आवश्यकता है।
हम सब देशवासी मिलकर देश की सृमद्धि में अपना योगदान प्रदान करें। हमारे दिल में प्रेम, एकता और अखंड़ता के रंग परवान चढ़ें, हमारे ऊपर देशभक्ति के रंग बरसे और हमारा तन और मन राष्ट्रभक्ति के रंग में ंरंग जाये यही होली का संदेश है। हम अपने देश को, वतन को एकता के सूत्र में बांधे रखे और उसे मजबूूत बनाये रखें।
आईये हम सब मिलकर नशामुक्त होली मनायें तथा जातपात से मुक्त समाज बनाने में सहयोग प्रदान करें। होली के रंग यही संदेश देते है कि भेदभाव, जातिपाति, ऊँच-नीच, जातिवाद, नक्सलवाद, सम्प्रदायवाद, भष्ट्राचार की दीवारों को तोड़ते हुये सभी देश प्रेम के रंगों में रंग जाये। लाल, पीला, हरा, नीला सभी रंगों का अपना सौन्दर्य है, खूबसूरती है। अगर एक ही रंग से होली खेली जाये तो रंगों का महत्व समाप्त हो जायेगा; खूबसूरती कम हो जायेगा, विविधता नहीं रहेगी तो उत्साह भी कम होगा उसी प्रकार भारत में भी विविधता नहीं होगी तो हम एकता के महत्व को जान ही नहीं पायेंगे इसलिये आईये इन विविधता के रंगों को एकता में पिरोने के साथ ही भारत में व्याप्त इस विविध रंगों और विविध फूलों के गुलदस्ते को सदैव जीवंत और जागृत बनाये रखने में अपना सहयोग प्रदान करें।
होली के अवसर पर रंग खेलते हुये हम सारे मतभेद भूल जाते हंै, ऊँच-नीच और छोटे -बड़े का बन्धन तोड़ देते हैं नफरत की सारी दीवारों को तोड़ते हुये इनसे ऊपर उठ जाते हैं। ऐसे ही जीवन के रंग मंच पर भी हम सभी भेदभावों को भुलाकर एक ऐसे समाज का निर्माण करें जिसमें समरसता हो, सद्भाव हो, प्रेम हो, शान्ति हो, और बन्धुत्व हो, आत्मीयता हो। हम सभी मिलकर एक मन और नेक मन से होली खेलें। होली, आनन्द, उल्लास, उमंग और तरंग का पर्व है। इसके मर्म को आत्मसात कर जीवन में आगे बढ़ते रहंे।
होली के अवसर पर जल संरक्षण और पौधांे के रोपण का संकल्प लें और दूसरों को भी इस हेतु प्रेरित करें। होलिका दहन हेतु अनेक पेड़ों को काटा जाता है वहीं दूसरी ओर लकड़ियों को जलाने से वायु प्रदूषण भी बढ़ जाता है। अतः होलिका दहन के लिये गोबर के उपलों का प्रयोग करें ताकि पेड़ों का संरक्षण हो और लकड़ियों के जलने से जो वृ़क्ष कटते हैं उससे काफी बड़ी क्षति होती है वो भी कम हो सकेगी। गाय के गोबर से बने उपलों का उपयोग करने से गौ वंश का भी संरक्षण होगा इस संकल्प के साथ होली मनाये।